एक बार एक बुढ़िया किसी गाड़ी से टकरा गई। वह बेहोश होकर गिर पड़ी। लोगों की भीड़ ने उसे घेर लिया। कोई बेहोश बुढ़िया की हवा करने लगा तो कोई सिर सहलाने लगा।
गाड़ीवाला टक्कर मारते ही भाग गया था। वहीं शेखचिल्ली जनाब भी खड़े थे। एक आदमी बोला, जल्दी से बुढ़िया को अस्पताल ले चलो दूसरे ने कहा, हाँ, ताँगा लाओ और इसे अस्पताल पहुँचाओ। हमें इसे यहीं पर होश में लाना चाहिए। भई, कोई तो पानी ले लाओ। तीसरा बोला। पानी के छींटे देने पर यह होश में आ जाएगी।
हाँ, हमें इसकी जिंदगी बचानी चाहिए। लेकिन यह तो होश में नहीं आ रही। इसे अस्पताल ही ले चलो। वहीं होश में आएगी। वहीं खड़ा शेखचिल्ली बोला, इसे होश में लाने का तरीका तो मैं बता सकता हूँ। बताओ भाई?, लोग बोले।
इसके लिए गर्म-गर्म जलेबियाँ लाओ। जलेबियों की खुशबू इसे सुँघाओ और फिर इसके मुँह में डाल दो। जलेबियाँ इसे बड़ा फायदा करेंगी। शेखचिल्ली ने बताया। शेखचिल्ली की बात बुढ़िया के कानों में पड़ गई।
वह बेहोशी का बहाना किए पड़ी थी। शेखचिल्ली की बात सुनते ही वह बोल उठी, अरे भाइयों, इसकी भी तो सुनो देखो यह लड़का क्या कह रहा है। लोग चौंक पड़े। उन्होंने बुढ़िया को बुरा-भला कहा और चल दिए। बहानेबाज बुढ़िया भी चुपचाप उठकर जाने को मजबूर हो गई।
शेखचिल्ली और कुत्ते
जनाब शेखचिल्ली दुनिया में सिर्फ दो चीजों से डरते थे. घर में अपनी बीवी से और बाहर कुत्तों से. सो वह घर में बीवी और बाहर कुत्तों से ज़रा बचकर ही रहते. क्योंकि उन्होंने भी सुन रखा था कि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं, लेकिन इस अफवाह पर उन्हें यकीन नहीं था. उन्हें यह भी लगता था कि क्या पता इस अफवाह से कुत्ते वाकिफ भी हैं या नहीं सो वह ऐसा ख़तरा उठाने की कभी सोचते भी नहीं थे.
गाँव के कुत्तों को भी उनमें कोई रूचि नहीं रह गई थी. उनकी कद-काठी, पहनावा और शक्ल कुत्तों को ज़रा भी पसंद नहीं थी. शेख़ चिल्ली दुबले-पतले और नाटे तो थे ही उनका चश्मा अजीब ढंग से उनकी नाक पर टिका रहता था. एक दिन की बात शेख़ चिल्ली अपने चचा जान से मिलने के लिए बगल के गाँव में जा रहे थे.
उस गाँव के अजनबी कुत्तों ने ऎसी अजीब शक्ल-सूरत वाला इंसान पहले कभी नहीं देखा था. आज जब पहले-पहल उन्हें ऐसा मौक़ा नसीब हुआ तो वे जोर-जोर से भौंकने लगे. वे इस अजीब इंसान का पीछा छोड़ने को तैयार न थे. जहां भी शेख़ चिल्ली जाते कुत्ते भी पीछे-पीछे भौंकते हुए लगे रहते.
शेख़ चिल्ली ने कुत्तों को पीछा करते देख अपनी चाल बढ़ा दी. लेकिन वह जितना तेज चलते कुत्ते उतनी ही जोर से भौंकते. आखिरकार शेख़ चिल्ली के सब्र का बाँध टूट गया. उन्हें लगा कि ये बदमाश कुत्ते ऐसे नहीं मानने वाले, कुछ करना ही पड़ेगा. उन्होंने किसी हथियार की तलाश में इधर-उधर नजर फिराई. बगल में ही एक ईंट पड़ी थी.
वह झुक कर उसे उठाने लगे. लेकिन ईंट हिल भी नहीं रही थी, वह तो जमीन में गड़ी थी. पूरी ताकत लगा देने के बाद भी शेख़ चिल्ली उसे उठाने में कामयाब नहीं हुए. वे नाराज़ हो गए और गुस्से से भरकर गाँव वालों को गालियाँ देने लगे.
एक गाँव वाला उधर से गुजर रहा था. उसने शेख़ चिल्ली से उनकी नाराजगी का सबब पूछा. बड़ा अजीब गाँव है तुम्हारा. शेख़ चिल्ली गुस्से में ही चिल्लाए, यह भी कोई तरीका है. तुम लोग कुत्तों को खुला रखते हो और ईंटों को बांध कर.
गाँव के कुत्तों को भी उनमें कोई रूचि नहीं रह गई थी. उनकी कद-काठी, पहनावा और शक्ल कुत्तों को ज़रा भी पसंद नहीं थी. शेख़ चिल्ली दुबले-पतले और नाटे तो थे ही उनका चश्मा अजीब ढंग से उनकी नाक पर टिका रहता था. एक दिन की बात शेख़ चिल्ली अपने चचा जान से मिलने के लिए बगल के गाँव में जा रहे थे.
उस गाँव के अजनबी कुत्तों ने ऎसी अजीब शक्ल-सूरत वाला इंसान पहले कभी नहीं देखा था. आज जब पहले-पहल उन्हें ऐसा मौक़ा नसीब हुआ तो वे जोर-जोर से भौंकने लगे. वे इस अजीब इंसान का पीछा छोड़ने को तैयार न थे. जहां भी शेख़ चिल्ली जाते कुत्ते भी पीछे-पीछे भौंकते हुए लगे रहते.
शेख़ चिल्ली ने कुत्तों को पीछा करते देख अपनी चाल बढ़ा दी. लेकिन वह जितना तेज चलते कुत्ते उतनी ही जोर से भौंकते. आखिरकार शेख़ चिल्ली के सब्र का बाँध टूट गया. उन्हें लगा कि ये बदमाश कुत्ते ऐसे नहीं मानने वाले, कुछ करना ही पड़ेगा. उन्होंने किसी हथियार की तलाश में इधर-उधर नजर फिराई. बगल में ही एक ईंट पड़ी थी.
वह झुक कर उसे उठाने लगे. लेकिन ईंट हिल भी नहीं रही थी, वह तो जमीन में गड़ी थी. पूरी ताकत लगा देने के बाद भी शेख़ चिल्ली उसे उठाने में कामयाब नहीं हुए. वे नाराज़ हो गए और गुस्से से भरकर गाँव वालों को गालियाँ देने लगे.
एक गाँव वाला उधर से गुजर रहा था. उसने शेख़ चिल्ली से उनकी नाराजगी का सबब पूछा. बड़ा अजीब गाँव है तुम्हारा. शेख़ चिल्ली गुस्से में ही चिल्लाए, यह भी कोई तरीका है. तुम लोग कुत्तों को खुला रखते हो और ईंटों को बांध कर.
शेखचिल्ली की खिचड़ी
एक दिन शेख्चिल्ले बीमार हो गया। हकीम साहिब रहते थे शहर में। शेखचिल्ली के गाँव से दो मील के फासले पर, जब शेखचिल्ली उनके पास पहुंचा तो उन्होंने बताया यह चार पुडिया सौंफ के अर्क के साथ खाओ।
शेखचिल्ली बोला श्रीमान खाऊँ क्या? हकीम साहिब बोले खिचडी। अब शेखचिल्ली जिसने अभी तक खिचडी न खाई थी उस विचार से कि खिचडी शब्द भूल न जाऊं, जबान से खिचडी-२ कहता हुआ घर को चला। लेकिन था गंवार ही खिचडी शब्द भूल गया और खाचिडी-२ अपने आप उसके मुंह से निकलने लगा।
रास्ते में एक स्थान पर एक जात अपने खेत की रक्षा कर रहा हटा। उसने जिस समय शेखचिल्ली को खाचिडी-२ कहते हुए सुना तो मार-मार कर उसका भूसा बना दिया और कहने लगा अब खाचिडी न कहना, दूर रहो, समीप मत आओ। उसने दूर रहो समीप मत आओ कहना आरम्भ कर दिया। थोड़ी दूर गया होगा कि वहां चिदीमार जाल फैलाए बैठे थे। उन्होंने भी खूब मरम्मत की और बोले कि अब तुम आते जाते और फंसते जाओ कहना।
शेखचिल्ली ने आते जाओ और फंसे जाओ कहना आरम्भ कर दिया। सामने से बहुत से चोर आ रहे थे। उन्होंने शेख्चिल्लीए के यह शब्द सुने तो मारे गुस्से के उनका बुरा हाल हो गया। उन्होंने शेखचिल्ली को इतना पीटा कि अधमरा कर छोड़ दिया. वहां से रिहाई हुई तो शेखचिल्ली थक कर चूर हो गया था। उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि हे खुदा! कोई सवारी भेज, इतने में पीछे से एक सवार आता दिखाई दिया और बोला- ए ओर जानवर! मेरी घोडी की बछेडी कंधे पर उठा लो।
शेखचिल्ली ने बछेडी कंधे पर उठा ली और बोला-वाह मेरे ईश्वर! इतने वर्ष खुदाई करते हो गए हैं और अभी नीचे ऊपर के अंतर का पता नहीं। मैंने घोडी माँगी थी नीचे को, आपने दे दी ऊपर को।
शेखचिल्ली की नौकरी
शेखचिल्ली अब एक अमीर के यहाँ नौकर हो गया। उसने उसे ऊँट चराने के काम पर लगा दिया। वह हर रोज ऊंटों को जंगल में ले जाता और शाम को चराकर वापिस ले आता। एक दिन वह एक पेड़ के नीचे पड़कर सो गया तो ऊंटों को रस्सी पकड़कर कोई ले गया। अब वह जब जागा तो बहुत घबडाया। शेखचिल्ली ने प्रतिज्ञ की कि अब अमीर के घर नहीं जाऊंगा। ऊंटों की तलाश करके ही जाऊंगा। अब जंगल में इधर-उधर घूमने लगा।
उसको ऊंटों का नाम न आता था। इतने में उस अमीर के गाँव के कुछ आदमी सामने आते दिखाई दिए। उसने ऊंटों की लीद दिखाकर कहा कि जिनके हम है (नौकर) उनसे कह देना कि जिनकी यह (लीद) है जाते रहे।
शेखचिल्ली था तो मूर्ख ही और आप भी जानते हैं कि मूर्खों को गुस्सा बहुत जल्दी आता है। एक दिन शेखचिल्ली रास्ते में जा रहा था। लड़कों ने अपनी आदत के मुताबिक़ उसे तंग करना आरम्भ किया। एक कहता महामूर्ख दूसरा कहता जिंदाबाद मगर लड़के बहुत चालाक थे। वह घरों में घुस जाते और शेखचिल्ली गली में ही टापता रहता।
एक दिन संयोग से क्या हुआ कि छोरा सा लड़का शेखचिल्ली के हाथ आ गया। फिर क्या था वह मूर्ख तो था ही, उसने लड़के को उठाया और धडाम ससे कुँए में फेंक दिया। अपनी बीवी से जाकर बोला कि लड़के को कुँए में फेंक आया हूँ।
उसकी औरत का माथा ठनका। वह बोली अच्छी बात है। शेखचिल्ली जब सो गया तो उस बेचारी ने लड़के को कुँए से निकाला। मगर मारे ठण्ड के लड़के का बुरा हाल हो रहा था। उसका भाई गली में ही रहता था।
वह लड़के को वहां ले गई। सारा हाल कह सुनाया और बोली भैया लड़के को तुम अपने पास रखो। जब उसे आराम हो जाए फिर उसको घर पहुंचा देना। शेखचिल्ली के साले ने कहा बहन, जब उसके माँ-बाप उसकी खोज में आएँगे तो फिर क्या किया जाएगा?
शेखचिल्ली की स्त्री बोली-अगर लड़के को इस परिस्थिति में उनके सुपुर्द किया गया तो वह बला आएगी कि हम व्यर्थ में मारे जाएंगे। इसलिए आराम होने तक अपने पास रखो। अगर इसके माँ-बाप ढूँढने कल इए आवेंगे तो उनको मैं समझा लूंगी इतना कहकर वह अपने घर आई और एक बकरी के बच्चे को उठा कर कुँए में फेंक आया। जिस कुँए में लड़के को फेंका था।
दूसरे दिन प्रातः काल खोए हुए लड़के के माता-पिता उसकी तलाश में निकट वाली गली में से उस गली में आए, जिसमें शेखचिल्ली रहता था। वह अचानक अपने घर के सामने टहल रहा था लड़के के पिता ने उससे पूछा कि तुमने हमारा लड़का तो नहीं देखा?
शेखचिल्ली ने उत्तर दिया-श्रीमान उस पाजी ने मुझे छेड़ा था मैं कल शाम उसे कुँए में फेंक दिया।
लड़के के पिता ने पूछा किस कुँए में ।
शेखचिल्ली ने कहा-उस सामने वाले कुँए में।
लड़के के माता-पिता ने कुँए में एक आदमी को उतारा उस आदमी ने कुँए से आवाज डी, सरकार लड़का वादका तो यहाँ कोई नहीं है। हाँ एक बकरी का बच्चा तो अवश्य है। यह कहकर उसने रस्सी के साथ बकरे का बच्चा देखकर बहुत हैरान हुए।
लड़के के माता-पिता उदास होकर शहर के दूसरे भागों में लड़के को तलाश करने लगे। इतने में लड़का स्वस्थ हो गया और उसे शेखचिल्ली के साले ने उसके घर के सामने ले जाकर छोड़ दिया।
यह सब कुछ हो गया। मगर शेखचिल्ली बेचारा कई दिन तक सोचता रहा कि लड़के से बकरी का बच्चा किस tअरह बन गया।
शेक चिल्ली की वेवकूफी
एक दिन की बात है कि शेखचिल्ली एक अमीर आदमी के यहाँ सीस का काम करता था। एक दिन जब कि मालिक गाडी पर सवार होकर बाजार जा रहा था और शेखचिल्ली उसके पीछे बैठा हुआ था तो मालिक का रेशमी रूमाल हवा में गिर गाया। मालिक ने रूमाल को न देखा, परन्तु उसने देख लिया।
लेकिन उसको उठाया नहीं इत्तफाक से मालिक रास्ते में एक दुकार के पास जाकर ठहरा। जब रूमाल की जरूरत महसूस हुई तो कहा मेरा रूमाल कहाँ है? शेखचिल्ली ने फ़ौरन कहा हुजूर आपका रूमाल फलां बाजार में गिर गया था।
इस पर मालिक ने डपट कर कहा बेवकूफ तुमने उठाया क्यों नहीं? उसने हाथ जोड़ कर कहा-हुजूर का हुक्म न था। मालिक ने गुस्से से दोबारा देखते हुए कहा-जब कोई चीज हमारी या गाडी वगैरह की गिरे उए फ़ौरन उठा लिया करो। उसने हाथ जोड़कर अर्ज दिया, बेहतर हुजूर आइन्दा ऐसा ही होगा।
दूसरे दिन जब मालिक सैर करने अपने घर जा रहा था तो घोड़े ने लीद दी। उसने फ़ौरन उतर कर लीद को कपडे में बाँध लिया और अपने पास इत्मिनान से रखा।
वापसी में मालिक के साथ एक और साहब भी घर आए और मतलब की बातें करने लगे। अब शेखचिल्ली ने अपनी ईमानदारी का सबूत देने के लिये वही लीद, कपडे में बंधी हुई, मालिक के सामने पेश कर दी और अदब से कहा हजूर की आज्ञा से घोड़े की गिरी हुई चीज को उठा लिया था। मालिक के दोस्त ने मेज पर पडी हुई गठरी को खोलता देखकर बोलना बंद कर दिया और बाद में चीज देखने पर खिलखिलाकर हंसा। मालिक को ऐसी बुरी स्थिति पर बड़ा क्रोध आया।
शेखचिल्ली ने मालिक की लाल आँखे देखकर कदम पीछे हटा लिया और जल्दी से यह कहता हुआ बाहर चला गया श्रीमान की आज्ञा थी। अच्छा अब मैं घोड़े को पानी पिला आऊँ- इसके बाद वह घोड़े को नदी पर ले गया किनारे पर खडा होकर सोचने लगा- यहाँ पानी थोड़ा है, साथ ही कीचड वाला है।
आगे चलकर पानी पिलाना चाहिए, यह सोचकर घोड़े को आगे ले गया। नदी के बीच में चूंकि पानी बहुत गहरा था, अतः घोड़े की रस्सी छोड़ दी और अपनी जान बचा कर बाहर भाग आया। उसका विचार था कि घोड़ा इसी तरफ आ जाएगा। मगर जब घोड़े को गोते खाते और दूसरी तरफ बहते देखा तो शोर मचाने लगा। घोड़ा भाग गया घोड़ा भाग गया।
इसी तरह चिल्लाता हुआ मकान पर आ गया और मालिक को हांफता हुआ हाल सुनाने लगा। मालिक ने उसकी बात पर विश्वास करके अपनी तलवार उठा ली जो वह शाम को अपने पास रखता था। शेखचिल्ली को साथ में लेकर वह नदी पर गया। उसका ख़याल था कि घोड़ा असली है और उसी स्थान पर ठहर गया होगा मगर जब शेखचिल्ली अपने मालिक के साथ नदी पर पहुंचा तो मालिक से कहा- आपको अब तलवार संभालने की आवश्यकता नहीं है, मुझे दे दीजिये। व्यर्थ में आप को कष्ट होगा।
मालिक उसकी चिकनी-चपड़ी बातों में आ गया। शेखचिल्ली को तलवार पकड़ा दी। किनारे पर पहुँच कर शेखचिल्ली ने मालिक का उस तरफ रूख करके बताया, जिधर पाने गहरा था और घोड़ा गर्क हुआ था। कहा- श्रीमान यहाँ से घोड़ा भाग गया था। चिन्ह बताने के लिये कोई कंकर नहीं उठाया। बल्कि जोश में तलवार ही को उस निशाँ पर फेंक दिया।
मालिक इस मूर्खता की हद को देखकर सहन न कर सका। मालिक ने शेखचिल्ली के गाल पर दो तमाचे रसीद दिए और कहा-हरामजादे घोड़ा गर्क करके कहता है भाग गया। फिर बतलाने के लिये तलवार को भी फेंक दिया।
उसको ऊंटों का नाम न आता था। इतने में उस अमीर के गाँव के कुछ आदमी सामने आते दिखाई दिए। उसने ऊंटों की लीद दिखाकर कहा कि जिनके हम है (नौकर) उनसे कह देना कि जिनकी यह (लीद) है जाते रहे।
शेखचिल्ली था तो मूर्ख ही और आप भी जानते हैं कि मूर्खों को गुस्सा बहुत जल्दी आता है। एक दिन शेखचिल्ली रास्ते में जा रहा था। लड़कों ने अपनी आदत के मुताबिक़ उसे तंग करना आरम्भ किया। एक कहता महामूर्ख दूसरा कहता जिंदाबाद मगर लड़के बहुत चालाक थे। वह घरों में घुस जाते और शेखचिल्ली गली में ही टापता रहता।
एक दिन संयोग से क्या हुआ कि छोरा सा लड़का शेखचिल्ली के हाथ आ गया। फिर क्या था वह मूर्ख तो था ही, उसने लड़के को उठाया और धडाम ससे कुँए में फेंक दिया। अपनी बीवी से जाकर बोला कि लड़के को कुँए में फेंक आया हूँ।
उसकी औरत का माथा ठनका। वह बोली अच्छी बात है। शेखचिल्ली जब सो गया तो उस बेचारी ने लड़के को कुँए से निकाला। मगर मारे ठण्ड के लड़के का बुरा हाल हो रहा था। उसका भाई गली में ही रहता था।
वह लड़के को वहां ले गई। सारा हाल कह सुनाया और बोली भैया लड़के को तुम अपने पास रखो। जब उसे आराम हो जाए फिर उसको घर पहुंचा देना। शेखचिल्ली के साले ने कहा बहन, जब उसके माँ-बाप उसकी खोज में आएँगे तो फिर क्या किया जाएगा?
शेखचिल्ली की स्त्री बोली-अगर लड़के को इस परिस्थिति में उनके सुपुर्द किया गया तो वह बला आएगी कि हम व्यर्थ में मारे जाएंगे। इसलिए आराम होने तक अपने पास रखो। अगर इसके माँ-बाप ढूँढने कल इए आवेंगे तो उनको मैं समझा लूंगी इतना कहकर वह अपने घर आई और एक बकरी के बच्चे को उठा कर कुँए में फेंक आया। जिस कुँए में लड़के को फेंका था।
दूसरे दिन प्रातः काल खोए हुए लड़के के माता-पिता उसकी तलाश में निकट वाली गली में से उस गली में आए, जिसमें शेखचिल्ली रहता था। वह अचानक अपने घर के सामने टहल रहा था लड़के के पिता ने उससे पूछा कि तुमने हमारा लड़का तो नहीं देखा?
शेखचिल्ली ने उत्तर दिया-श्रीमान उस पाजी ने मुझे छेड़ा था मैं कल शाम उसे कुँए में फेंक दिया।
लड़के के पिता ने पूछा किस कुँए में ।
शेखचिल्ली ने कहा-उस सामने वाले कुँए में।
लड़के के माता-पिता ने कुँए में एक आदमी को उतारा उस आदमी ने कुँए से आवाज डी, सरकार लड़का वादका तो यहाँ कोई नहीं है। हाँ एक बकरी का बच्चा तो अवश्य है। यह कहकर उसने रस्सी के साथ बकरे का बच्चा देखकर बहुत हैरान हुए।
लड़के के माता-पिता उदास होकर शहर के दूसरे भागों में लड़के को तलाश करने लगे। इतने में लड़का स्वस्थ हो गया और उसे शेखचिल्ली के साले ने उसके घर के सामने ले जाकर छोड़ दिया।
यह सब कुछ हो गया। मगर शेखचिल्ली बेचारा कई दिन तक सोचता रहा कि लड़के से बकरी का बच्चा किस tअरह बन गया।
शेक चिल्ली की वेवकूफी
एक दिन की बात है कि शेखचिल्ली एक अमीर आदमी के यहाँ सीस का काम करता था। एक दिन जब कि मालिक गाडी पर सवार होकर बाजार जा रहा था और शेखचिल्ली उसके पीछे बैठा हुआ था तो मालिक का रेशमी रूमाल हवा में गिर गाया। मालिक ने रूमाल को न देखा, परन्तु उसने देख लिया।
लेकिन उसको उठाया नहीं इत्तफाक से मालिक रास्ते में एक दुकार के पास जाकर ठहरा। जब रूमाल की जरूरत महसूस हुई तो कहा मेरा रूमाल कहाँ है? शेखचिल्ली ने फ़ौरन कहा हुजूर आपका रूमाल फलां बाजार में गिर गया था।
इस पर मालिक ने डपट कर कहा बेवकूफ तुमने उठाया क्यों नहीं? उसने हाथ जोड़ कर कहा-हुजूर का हुक्म न था। मालिक ने गुस्से से दोबारा देखते हुए कहा-जब कोई चीज हमारी या गाडी वगैरह की गिरे उए फ़ौरन उठा लिया करो। उसने हाथ जोड़कर अर्ज दिया, बेहतर हुजूर आइन्दा ऐसा ही होगा।
दूसरे दिन जब मालिक सैर करने अपने घर जा रहा था तो घोड़े ने लीद दी। उसने फ़ौरन उतर कर लीद को कपडे में बाँध लिया और अपने पास इत्मिनान से रखा।
वापसी में मालिक के साथ एक और साहब भी घर आए और मतलब की बातें करने लगे। अब शेखचिल्ली ने अपनी ईमानदारी का सबूत देने के लिये वही लीद, कपडे में बंधी हुई, मालिक के सामने पेश कर दी और अदब से कहा हजूर की आज्ञा से घोड़े की गिरी हुई चीज को उठा लिया था। मालिक के दोस्त ने मेज पर पडी हुई गठरी को खोलता देखकर बोलना बंद कर दिया और बाद में चीज देखने पर खिलखिलाकर हंसा। मालिक को ऐसी बुरी स्थिति पर बड़ा क्रोध आया।
शेखचिल्ली ने मालिक की लाल आँखे देखकर कदम पीछे हटा लिया और जल्दी से यह कहता हुआ बाहर चला गया श्रीमान की आज्ञा थी। अच्छा अब मैं घोड़े को पानी पिला आऊँ- इसके बाद वह घोड़े को नदी पर ले गया किनारे पर खडा होकर सोचने लगा- यहाँ पानी थोड़ा है, साथ ही कीचड वाला है।
आगे चलकर पानी पिलाना चाहिए, यह सोचकर घोड़े को आगे ले गया। नदी के बीच में चूंकि पानी बहुत गहरा था, अतः घोड़े की रस्सी छोड़ दी और अपनी जान बचा कर बाहर भाग आया। उसका विचार था कि घोड़ा इसी तरफ आ जाएगा। मगर जब घोड़े को गोते खाते और दूसरी तरफ बहते देखा तो शोर मचाने लगा। घोड़ा भाग गया घोड़ा भाग गया।
इसी तरह चिल्लाता हुआ मकान पर आ गया और मालिक को हांफता हुआ हाल सुनाने लगा। मालिक ने उसकी बात पर विश्वास करके अपनी तलवार उठा ली जो वह शाम को अपने पास रखता था। शेखचिल्ली को साथ में लेकर वह नदी पर गया। उसका ख़याल था कि घोड़ा असली है और उसी स्थान पर ठहर गया होगा मगर जब शेखचिल्ली अपने मालिक के साथ नदी पर पहुंचा तो मालिक से कहा- आपको अब तलवार संभालने की आवश्यकता नहीं है, मुझे दे दीजिये। व्यर्थ में आप को कष्ट होगा।
मालिक उसकी चिकनी-चपड़ी बातों में आ गया। शेखचिल्ली को तलवार पकड़ा दी। किनारे पर पहुँच कर शेखचिल्ली ने मालिक का उस तरफ रूख करके बताया, जिधर पाने गहरा था और घोड़ा गर्क हुआ था। कहा- श्रीमान यहाँ से घोड़ा भाग गया था। चिन्ह बताने के लिये कोई कंकर नहीं उठाया। बल्कि जोश में तलवार ही को उस निशाँ पर फेंक दिया।
मालिक इस मूर्खता की हद को देखकर सहन न कर सका। मालिक ने शेखचिल्ली के गाल पर दो तमाचे रसीद दिए और कहा-हरामजादे घोड़ा गर्क करके कहता है भाग गया। फिर बतलाने के लिये तलवार को भी फेंक दिया।
शेखचिल्ली का खुरपा
एक बार घरवालों ने शेखचिल्ली को घास खोदने के लिए जंगल भेज दिया। दोपहर तक उसने एक गट्ठर घास खोद ली और गट्ठर उठाकर घर चला आया। घरवाले बड़े खुश हुए। पहली बार शेखचिल्ली ने कोई काम किया था। परंतु जब कई घंटे बीच गए तब शेखचिल्ली को याद आया कि घास खोदने के लिए जिस खुरपे को वह ले गया था, वह तो वहीं रह गया है, जहाँ उसने घास खोदी थी।
तेज धूप में पड़ा-पड़ा खुरपा गर्म हो गया था। चिल्ली ने चिलचिलाती धूप में पड़ा हुआ अपना गर्म तवे-सा तपता खुरपा मूठ से पकड़ा लेकिन मूठ भी गर्म हो चुकी थी। शेखचिल्ली घबरा गया। अरे खुरपे को तो बुखार चढ़ गया है। मन-ही-मन चिल्ली मुस्कुराता हुआ हकीम साहब के पास पहुंचा और बोला, हकीम साहब, हमारे खुरपे को बुखार हो गया है। जरा दवाई दे दीजिए। हकीम साहब समझ गए कि शेखचिल्ली शरारत कर रहा है।
उन्होंने वैसा ही उत्तर दिया, अरे हाँ, वाकई इसे तो बुखार है। जाओ जल्दी से इसे रस्सी से बाँधकर कुएँ में लटकाकर डुबकी लगवा दो। तब भी बुखार न उतरे तो इसे मेरे पास ले आना। शेखचिल्ली चला गया। शेखचिल्ली ने रस्सी ने खुरपा बाँधा और उसे कुएँ में लटकाकर खूब गोते लगवाया।
थोड़ी देर बाद उसने उसे ऊपर खींचा। खुरपा ठंडा हो चुका था। चिल्ली ने हकीम साहब को धन्यवाद दिया। संयोगवश एक दिन हकीम साहब के दूर की एक रिश्तेदार को तेज बुखार हो गया था। वह बूढ़ी उन्हीं से अक्सर दवाई लेने आती थी। वह शेखचिल्ली के पड़ोस में रहती थी।
चिल्ली ने देखा कि तेज बुखार से तपती हुई उस सत्तर वर्ष की बुढ़िया को लोग हकीम साहब के पास ले जाना चाहते हैं। शेखचिल्ली को शरारत सूझी। उसने हकीम साहब को बताया हुआ नुस्खा उन्हें बताते हुए कहा कि, हकीम साहब जो वहाँ बताएँगे, मैं यहीं बताए देता हूँ। दादीजान को तेज बुखार है। यह गरम खुरपे-सी तप रही है।
इसका सबसे अच्छा इलाज यह है कि इन्हें किसी कुएँ या तालाब में खूब अच्छी तरह डुबकी लगवाओ। बुखार नाम की चीज सदा के लिए दूर हो जाएगी। यह तरकीब मुझे हकीम साहब ने खुद बताई थी। लोगों ने शेखचिल्ली की बात मान ली और बुढ़िया को एक पीढ़े पर बैठाकर रस्सियों से बाँधकर कुएँ में लटका दिया।
कुएँ के पानी में बुढ़िया को खूब डुबकियाँ लगवाई गईं। कई डुबकियाँ लगवाने के बाद जब बुढ़िया को बाहर निकाला गया तो वह ठंडी पड़ चुकी थी।
उसके प्राण-पखेरू उड़ गए थे। लोग शेखचिल्ली पर बिगड़ उठे। बुढ़िया के घरवालों ने गुस्से में कहा, तुमने तो दादीजान को मार ही दिया। शेखचिल्ली बोला, मियाँ, मैंने केवल बुखार की गारंटी ली थी। अच्छी तरह देख लो, बुखार उतर गया है या नहीं। हकीम साहब का नुस्खा गलत नहीं है। यह उन्हीं की बताई हुई तरकीब है। खुद जाकर पूछ लो।
तरकीब गलत होती तो इस बुढ़िया का बुखार न उतरता। लोग हकीम साहब के पास गए। हकीम साहब से पूछा गया तो उन्होंने चिल्ली के खुरपे के बुखार वाली बात बताते हुए कहा कि उन्होंने गर्म खुरपे को ठंडा करने के लिए चिल्ली को तरकीब बताई थी।
बुढ़िया को बुखार था। उसे पानी में नहीं डुबाना चाहिए था। वह इंसान थी, खुरपा नहीं। शेखचिल्ली पर इस घटना के कारण घरवालों की बहुत डाँट पड़ी।
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